Mahatma jyotiba fule death anniversary 2023-कमजोर लोगों के लिए बने थे बुलंद आवाज , ऐसी प्रतिभाशाली व्यक्ति के बारे में जानते हैं।

    Mahatma jyotiba fule death anniversary 2023-कमजोर लोगों के लिए बने थे बुलंद आवाज , ऐसी प्रतिभाशाली व्यक्ति के बारे में जानते हैं। 

Mahatma Jyotiba Fule
image- Mahatma Jyotiba Fule

Mahatma jyotiba fule death anniversary 2023-


कमजोर लोगों के लिए बने थे बुलंद आवाज , ऐसी प्रतिभाशाली व्यक्ति के बारे में जानते हैं।

महात्मा ज्योतिबा फुले का निधन 28 नवंबर 1890 को पुणे में हुआ था तब उनकी आयु 63 वर्ष थी। नीति शास्त्र धर्म और मानवतावाद के आधार पर उन्होंने अपना कभी ना ढलना वाला साम्राज्य निर्माण किया था।


महात्मा ज्योतिबा फुले यह नाम हर उस भारतीय व्यक्ति के लिए महत्वपूर्ण योगदान रखता है जिसने कभी भारत के उन्नति का सपना देखा था। समाज कल्याण के साथ-साथ उन्होंने स्त्रियों को शिक्षण लेने के लिए सक्षम बनाया , बाल विवाह का विरोध, विधवा विवाह को समर्थन देना, गरीब किसान वर्ग के साथ हमेशा खड़ा रहना आदि समाज काम उन्होंने  किया।

ऐसे महान व्यक्ति का जन्म महाराष्ट्र के Pune जिले में

11 अप्रैल 1827 को हुआ।


चलिए, आइए जानते हैं उनके जीवन की कुछ रोचक बातें:-


- महात्मा ज्योतिबा फुले का जन्म: महात्मा ज्योतिबा फुले का जन्म 1827 में पुणे में हुआ था। उनके बचपन में माँ की छात का सहारा ना मिलने के कारण उनका लालन-पालन एक दाई के द्वारा किया गया। महाराष्ट्र के होने के कारण उन्होंने पहले अपनी मातृभाषा मराठी में अपना शिक्षण पूरा किया और बाद में 21 साल के होने के बाद उन्होंने अंग्रेजी में सातवीं कक्षा का शिक्षण पूरा किया।


- 1840 में उन्होंने सावित्रीबाई से शादी की और बाद में उनको पढ़ाई-लीखाया और उनको इस तरह सशक्त बनाया गया कि उन्होंने स्त्रियों के शिक्षा में बहुत बड़ी कामगीरी की। स्त्रियों के शिक्षा में दोनों ने मिलकर काम किया और अपनी समाज सेवा को मरते दम तक निभाया।


- महात्मा ज्योतिबा फुले का कार्य क्षेत्र:


  उन्होंने स्त्रीयों के कल्याण के लिए और विधवा पुनर्विवाह के लिए बड़ा योगदान दिया। गरीब किसानों के साथ हमेशा खड़े रहने के साथ-साथ, स्त्रीयों की शिक्षा को बढ़ावा देने के लिए और उनकी आय को सुधारने के लिए उन्होंने पुणे में 1848 में पहला स्कूल स्थापित किया, शुरुआती दिनों में उन्होंने खुद ही पढ़ाया लेकिन बाद में अपनी पत्नी सावित्रीबाई को शिक्षा देकर उन्हें स्कूल का अध्यापक बना दिया।


- महात्मा को संत महात्मा की जीवनी पढ़ने में बहुत बड़ी रुचि थी, उनसे उन्हें पता चला कि नर नारी एक समान हैं, तो उनकी शिक्षा में भेद क्यों होना चाहिए, इसी कारण उन्होंने स्त्रियों  के शिक्षा के प्रति योगदान दिया।


- महात्मा की उपाधि:

गरीब और लाचार लोगों को न्याय दिलाने के लिए उन्होंने सत्यशोधक समाज की 1873 में स्थापना की। समाज क्षेत्र में उनके इस बड़े काम को ध्यान में रखते हुए मुंबई के एक बड़ी सभा में उन्हें 1888 में "महात्मा" नामक पदवि दी गई। महाराष्ट्र के सातारा जिले से पुणे में आकर उनके पूर्वजों ने फूलों का व्यापार शुरू किया था, इसलिए उनका नाम फुले पड़ गया। ज्योतिबा ने विधवा पुनर्विवाह के लिए उच्च न्यायालय से मान्यता प्राप्त की, वह पहले से ही बाल विवाह विरोधी और विधवा विवाह के समर्थक थे। उन्होंने अपने कार्यकाल में समाज सेवा और सामाजिक सुधार को आगे बढ़ाने के लिए कई किताबें लिखीं, जैसे कि "गुलामगिरी," "किसान का कोड़ा," "छत्रपति शिवाजी," "राजा भोसला का पखड़ा," "तृतीय रत्न," "अछूतों की कैफियत"। 


ब्रिटिश सरकार द्वारा उन्हें 1883 में "स्त्री शिक्षण के आदिजनक" की पदवी दी गई।

Post a Comment

और नया पुराने